शनिवार, 28 अगस्त 2010

करीब एक साल बाद अपना ब्लॉग देखने बैठा। इतने दिनों से फुसर्त नहीं मिली कि कुछ लिख सकूं। सोचा एक बार कोशिश करके देखता हूं। लेकिन दो तीन लाइन से ज्यादा बात समझ में नहीं आई। आखिर क्यों? क्या विचार शून्य हो गया हूं। शायद हां। कहीं आपके साथ भी तो ऐसा ही नहीं हो रहा। क्या आप भी इंसानी मशीन बनकर तो नहीं रह गए हैं। शायद हां, तभी तो कहीं क्रांति नहीं होती, कहीं मशाल नहीं जलती, कहीं मुहिम की शुरुआत नहीं होती।